राजस्थान अपनी प्राकृतिक विविधता और भौगोलिक संरचना के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई प्रकार की झीलें पाई जाती हैं, जिनमें खारे पानी की झीलों का विशेष महत्व है। ये झीलें न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनमें से कई नमक उत्पादन का भी एक प्रमुख स्रोत हैं। इस लेख में राजस्थान की प्रमुख खारे पानी की झीलों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
1. सांभर झील
सांभर झील राजस्थान की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। यह झील जयपुर जिले में स्थित है और नागौर तथा अजमेर जिलों की सीमाओं को भी छूती है। यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, जिसमें नमक उत्पादन व्यापक रूप से किया जाता है। सांभर झील से भारत के कुल नमक उत्पादन का लगभग 8.7% प्राप्त होता है।
विशेषताएँ:
- यह भारत की आंतरिक जल क्षेत्र की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
- यहां मुगल काल से ही नमक उत्पादन किया जाता रहा है।
- झील में पांच प्रमुख नदियां मिलती हैं – मेंथा, रूपनगढ़, खारी, खंडेला और बांडी का नाला।
- यह झील अपने उत्तम गुणवत्ता वाले नमक के लिए प्रसिद्ध है।
पारिस्थितिकी महत्व:
सांभर झील प्रवासी पक्षियों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान है। हर साल हजारों की संख्या में विदेशी पक्षी यहां आते हैं। विशेष रूप से फ्लेमिंगो पक्षी इस झील में बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं।
2. डीडवाना झील
डीडवाना झील नागौर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण खारे पानी की झील है। यह झील मुख्य रूप से अपनी लवणीय चट्टानों और जल भंडारों के लिए जानी जाती है।
विशेषताएँ:
- इस झील में सोडियम की तुलना में सल्फेट की मात्रा अधिक होती है।
- इस कारण, यहां का नमक खाने योग्य नहीं होता है।
- यह क्षेत्र नमक खनन के लिए भी जाना जाता है।
- झील के आसपास लवणीय मिट्टी पाई जाती है, जिससे स्थानीय कृषि प्रभावित होती है।
- यह झील आसपास के कई छोटे तालाबों और जल स्रोतों से जुड़ी हुई है।
3. पचपदरा झील
पचपदरा झील राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है और अपनी उच्च गुणवत्ता वाले नमक के लिए प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ:
- इस झील में 98% तक सोडियम क्लोराइड पाया जाता है।
- यहां के खारवाल जाति के लोग पारंपरिक तकनीक “मोहनी झाड़ी” का उपयोग करके नमक के स्फटिक (क्रिस्टल) बनाते हैं।
- इस झील का नमक उद्योग और चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।
- झील का पानी अत्यधिक खारा होने के कारण अन्य उपयोगों के लिए अनुपयोगी होता है।
- यह झील राजस्थान की महत्वपूर्ण खारे पानी की झीलों में से एक है।
4. फलोदी झील (जोधपुर)

फलोदी झील जोधपुर जिले में स्थित है। यह झील भी खारे पानी की झीलों में शामिल है और इस क्षेत्र की जलवायु पर प्रभाव डालती है।
विशेषताएँ:
- झील का पानी अत्यधिक खारा होता है और इसमें लवणीय खनिज पाए जाते हैं।
- यह झील स्थानीय पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- यहाँ कई प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं।
- यह झील जोधपुर क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती है।
- नमक उत्पादन के अलावा, झील आसपास की मिट्टी को भी प्रभावित करती है।
5. लूणकरणसर झील (बीकानेर)
बीकानेर जिले में स्थित लूणकरणसर झील नमक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का नमक अच्छी गुणवत्ता का होता है और स्थानीय बाजार में इसकी काफी मांग रहती है।
विशेषताएँ:
- झील का जल अत्यधिक लवणीय होता है।
- झील के आसपास नमक उत्पादन का प्रमुख केंद्र विकसित हुआ है।
- यहाँ विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व पाए जाते हैं।
- इस झील का पारिस्थितिकी तंत्र आसपास के कृषि क्षेत्रों पर प्रभाव डालता है।
- स्थानीय समुदायों के लिए यह झील आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है।
6. डेगाना झील (नागौर)
डेगाना झील नागौर जिले में स्थित है। इस झील में नमक की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है।
विशेषताएँ:
- झील का पानी अत्यधिक खारा होता है।
- झील से नमक खनन किया जाता है।
- यह झील औद्योगिक और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण है।
- क्षेत्रीय जलवायु पर इसका प्रभाव पड़ता है।
- स्थानीय कृषि पर झील के जल की लवणीयता का असर देखा जाता है।
7. कुचामन झील (नागौर)
कुचामन झील नागौर जिले में स्थित है और खारे पानी की झीलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह झील क्षेत्रीय स्तर पर जल आपूर्ति और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।
विशेषताएँ:
- झील के पानी में उच्च मात्रा में लवण पाए जाते हैं।
- यह झील पारिस्थितिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
- झील से जुड़ा नमक उत्पादन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
- झील के आसपास की मिट्टी अत्यधिक क्षारीय होती है।
- यह झील आसपास के गांवों के लिए जल स्रोत का कार्य भी करती है।
8. ताल छापर झील (चूरू)
चूरू जिले में स्थित ताल छापर झील राजस्थान के वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। यह क्षेत्र काले हिरणों और प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
विशेषताएँ:
- यह झील मुख्य रूप से काले हिरणों के लिए संरक्षित क्षेत्र में स्थित है।
- झील के आसपास प्रवासी पक्षी बड़ी संख्या में आते हैं।
- इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी विविधता अत्यधिक समृद्ध है।
- यह झील जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- झील का जल स्तर मानसून पर निर्भर करता है।
9. थोब झील (बाड़मेर)
थोब झील बाड़मेर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण खारे पानी की झील है। यह झील स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाती है।
विशेषताएँ:
- झील अत्यधिक खारे पानी वाली है।
- स्थानीय समुदायों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है।
- यह झील आसपास की मिट्टी को प्रभावित करती है।
- झील के जल स्तर में मौसमी बदलाव आते हैं।
- प्रवासी पक्षियों के लिए यह झील आकर्षण का केंद्र है।
राजस्थान की खारे पानी की झीलें याद रखने की ट्रिक
राजस्थान की प्रमुख खारे पानी की झीलों को याद रखने के लिए निम्नलिखित ट्रिक का उपयोग किया जा सकता है:
“सा-डी-पा-फ-लू-डे-कु-ता-थो“
जहाँ:
- सा – सांभर झील
- डी – डीडवाना झील
- पा – पचपदरा झील
- फ – फलोदी झील
- लू – लूणकरणसर झील
- डे – डेगाना झील
- कु – कुचामन झील
- ता – ताल छापर झील
- थो – थोब झील
राजस्थान की मीठे पानी की झीलें
राजस्थान में खारे पानी की झीलों के अलावा मीठे पानी की झीलें भी पाई जाती हैं, जो जल आपूर्ति और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ प्रमुख मीठे पानी की झीलें निम्नलिखित हैं:
- आना सागर झील (अजमेर) – अजमेर में स्थित यह झील जल आपूर्ति और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण है।
- फतेह सागर झील (उदयपुर) – उदयपुर की प्रमुख झीलों में से एक, जिसे महाराणा फतेह सिंह ने बनवाया था।
- पिछोला झील (उदयपुर) – उदयपुर की सबसे प्रसिद्ध झीलों में से एक, जो अपनी सुंदरता और पर्यटन स्थलों के लिए जानी जाती है।
- राजसमंद झील (राजसमंद) – इस झील का निर्माण महाराणा राज सिंह ने करवाया था।
- जयसमंद झील (उदयपुर) – यह भारत की सबसे बड़ी मानव निर्मित झीलों में से एक है।
- उदयसागर झील (उदयपुर) – महाराणा उदय सिंह द्वारा निर्मित यह झील जल आपूर्ति के लिए उपयोग होती है।
- गैप सागर झील (डूंगरपुर) – डूंगरपुर जिले की प्रमुख मीठे पानी की झीलों में से एक।
राजस्थान की मीठे पानी की झीलों के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़े 👉 https://suyogacademy.com/raajasthaan-kee-pramukh-jheelen/
निष्कर्ष
राजस्थान की खारे पानी की झीलें प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कुछ झीलें नमक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि कुछ पारिस्थितिकी और प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं। दूसरी ओर, मीठे पानी की झीलें जल आपूर्ति, पर्यटन और जैव विविधता के लिए आवश्यक हैं। यह झीलें राजस्थान की जलवायु, भूगोल और आर्थिक गतिविधियों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इनके संरक्षण और सतत विकास के लिए उपयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी लाभकारी बनी रहें।