गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास

गुर्जर प्रतिहार वंश : राजस्थान और उत्तर भारत का महान साम्राज्य

प्रस्तावना

गुर्जर प्रतिहार वंश भारतीय इतिहास का वह गौरवशाली अध्याय है, जिसने छठी से बारहवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में राजनीतिक शक्ति, सैन्य सामर्थ्य और सांस्कृतिक वैभव की स्थापना की। इस वंश के शासकों ने अरब आक्रमणकारियों को पराजित कर भारत की भूमि को सुरक्षित रखा। इतिहासकारों, यात्रियों और शिलालेखों में गुर्जर प्रतिहारों का उल्लेख स्पष्ट मिलता है।

गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति

  • ऐहोल अभिलेख (पुलकेशिन द्वितीय) में पहली बार गुर्जर जाति का उल्लेख मिलता है।

  • वाणभट्टकृत हर्षचरित में भी गुर्जरों का वर्णन है।

  • डॉ. जी.एच. ओझा ने प्रतिहारों को जाति नहीं बल्कि एक पद से संबंधित माना।

  • चंदेल वंश के शिलालेखों में भी गुर्जर प्रतिहार का उल्लेख मिलता है।

  • अरब यात्री अल मसूदी ने इन्हें अल-गुजर कहा और इनके राजा को “बोरा” की उपाधि दी।

  • भगवानलाल इन्द्रजी ने इन्हें गूजर मानते हुए कनिष्क काल में आगमन की संभावना बताई।

  • स्कंधपुराण में पंचद्रविड़ों के वर्णन में गुर्जरों का उल्लेख एक देश विशेष के रूप में हुआ है।

प्रारम्भिक केंद्र : माण्डव्यपुर (मण्डौर)

  • घटियाला शिलालेख के अनुसार हरिश्चन्द्र नामक ब्राह्मण और उनकी क्षत्राणी पत्नी भद्रा से चार पुत्र उत्पन्न हुए –

    1. भोगभट्ट

    2. कदक

    3. रज्जिल

    4. दह

  • इन चारों ने माण्डव्यपुर (मण्डौर) को जीतकर परकोटे बनवाए।

  • प्रतिहार वंश की वास्तविक वंशावली हरिश्चन्द्र के पुत्र रज्जिल से शुरू होती है।

  • रज्जिल का पोता नागभट्ट प्रथम था, जिसने राजधानी को मण्डौर से मेड़ता स्थानांतरित किया।

प्रतिहारों की शाखाएँ

इतिहासकार नैणसी ने प्रतिहारों की –

  • 26 शाखाओं का उल्लेख किया है, जबकि

  • हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अनुसार 36 शाखाएँ बताई गई हैं।

इनमें –

  • मण्डौर,

  • जालौर,

  • राजोगढ़ (अलवर),

  • कन्नौज,

  • उज्जैन,

  • काठियावाड़

  • और भड़ोच मुख्य माने जाते हैं।

प्रमुख शासक और उपलब्धियाँ

1. नागभट्ट प्रथम (730 ई.)

  • राजधानी को मण्डौर से मेड़ता, भीनमाल और बाद में उज्जैन बनाया।

  • अरब आक्रमणकारियों को हराया और “नारायण” की उपाधि प्राप्त की।

  • ग्वालियर प्रशस्ति में इन्हें म्लेच्छों का नाशक कहा गया।

2. वत्सराज (775–805 ई.)

  • प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

  • त्रिपक्षीय संघर्ष (प्रतिहार–पाल–राष्ट्रकूट) की शुरुआत इसी काल में हुई।

  • 778 ई. में उद्योतन सूरी ने “कुवलयमाला” की रचना की, जिसमें मरुभाषा का पहला उल्लेख मिलता है।

3. नागभट्ट द्वितीय (805–833 ई.)

  • कन्नौज को राजधानी बनाया।

  • बंगाल के धर्मपाल को पराजित किया।

  • “प्रभावक चरित्र” के अनुसार 23 अगस्त 833 ई. को गंगा में डूबकर आत्महत्या की।

4. मिहिर भोज (843–885 ई.)

  • सर्वाधिक शक्तिशाली शासक।

  • अरब यात्री सुलेमान ने इन्हें इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु कहा।

  • ग्वालियर प्रशस्ति में “आदिवराह” कहा गया।

  • इनके चाँदी-ताँबे के सिक्कों पर “श्रीमदादिवराह” अंकित था।

  • विद्वान, कवि और ग्रंथकार— अनेक ग्रंथों की रचना।

5. महेन्द्रपाल प्रथम (885–910 ई.)

  • राजशेखर इनके दरबारी कवि व राजगुरु थे।

  • राजशेखर ने “काव्यमीमांसा”, “भुवनकोष”, “कर्पूरमंजरी” आदि रचनाएँ कीं।

6. महिपाल प्रथम (910–940 ई.)

  • अरब यात्री अलमसूदी के अनुसार, इनके समय कन्नौज अत्यंत समृद्ध था।

7. राज्यपाल (1018 ई.)

  • महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण कर इन्हें पराजित किया।

  • इसके बाद प्रतिहार साम्राज्य कमजोर होता चला गया।

प्रतिहार कला और स्थापत्य

प्रतिहार काल में मंदिर निर्माण, मूर्तिकला और स्थापत्य कला उत्कर्ष पर थी।

  • दधिमती माता मंदिर (नागौर) – प्रतिहार कालीन उत्कृष्ट उदाहरण।

  • नीमाज का मकरमण्डी माता मंदिर (पाली)

  • आनंदपुर कालू का विष्णु मंदिर

  • आऊवा का कामेश्वर मंदिर

  • किराडू का सूर्य मंदिर (बाड़मेर)

  • सोयला का शिव मंदिर (जोधपुर)

इन मंदिरों में रामायण दृश्यावली का भी अंकन मिलता है।

पतन और उत्तरकाल

  • 1093 ई. में गहड़वाल शासक चन्द्रदेव ने कन्नौज छीन लिया।

  • 12वीं शताब्दी तक राजस्थान में चौहान शक्तिशाली हो गए।

  • 1395 ई. में मण्डौर का दुर्ग प्रतिहारों से राठौड़ चूंडा को दे दिया गया।

गुर्जर प्रतिहार वंश का महत्व

  • अरब आक्रमणों से भारत की रक्षा।

  • कन्नौज को राजधानी बनाकर त्रिपक्षीय संघर्ष का संचालन।

  • कला, साहित्य और स्थापत्य को संरक्षण।

  • “हिन्दू पुनर्जागरण” का आधार।

निष्कर्ष

गुर्जर प्रतिहार वंश न केवल राजस्थान बल्कि सम्पूर्ण उत्तर भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य शक्ति का प्रतीक रहा। इस वंश ने अरब आक्रमणों को रोका और भारतीय सभ्यता को सुरक्षित रखा। कन्नौज को राजधानी बनाकर इस वंश ने भारत में दीर्घकालीन साम्राज्य स्थापित किया, जिसका प्रभाव आज भी राजस्थान की संस्कृति और स्थापत्य में देखा जा सकता है।

✅ FAQs : गुर्जर प्रतिहार वंश

Q1. गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति कहाँ से मानी जाती है?
गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति माण्डव्यपुर (मण्डौर) से मानी जाती है।

Q2. प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था?
मिहिर भोज प्रथम।

Q3. वत्सराज किसलिए प्रसिद्ध हैं?
उन्हें प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

Q4. नागभट्ट प्रथम की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?
अरब आक्रमणकारियों को पराजित कर भारत की रक्षा करना।

Q5. मिहिर भोज को कौन-सी उपाधि दी गई थी?
“आदिवराह” और “प्रभास”।

Q6. प्रतिहार वंश की राजधानी कहाँ थी?
प्रारंभ में मण्डौर, बाद में कन्नौज।

Q7. त्रिपक्षीय संघर्ष क्या था?
प्रतिहार–पाल–राष्ट्रकूट शासकों के बीच कन्नौज के लिए संघर्ष।

Q8. प्रतिहार काल के प्रमुख मंदिर कौन से हैं?
दधिमती माता मंदिर, किराडू का सूर्य मंदिर, नीमाज का मंदिर।

Q9. महेन्द्रपाल प्रथम का राजकवि कौन था?
राजशेखर।

Q10. किस अरब यात्री ने प्रतिहारों का उल्लेख किया?
अल मसूदी और सुलेमान।

Q11. प्रतिहार वंश के अंत का मुख्य कारण क्या था?
महमूद गजनवी के आक्रमण और गहड़वाल शासकों का उदय।

Q12. गुर्जर प्रतिहारों को किससे तुलना की जाती है?
लक्ष्मण से— “राम का प्रतिहार”।

Q13. प्रतिहार काल में किस भाषा का उल्लेख मिलता है?
मरुभाषा (कुवलयमाला में)।

Q14. महिपाल प्रथम के समय कौन यात्री आया?
अरब यात्री अलमसूदी।

Q15. प्रतिहार वंश का स्वर्णयुग किसके समय था?
मिहिर भोज प्रथम के काल में।

Q16. ग्वालियर प्रशस्ति किससे संबंधित है?
मिहिर भोज और नागभट्ट द्वितीय।

Q17. प्रतिहार कला की विशेषता क्या थी?
मंदिरों में सूक्ष्म शिल्पकला और रामायण दृश्यावली का अंकन।

Q18. प्रतिहार वंश का अंतिम शासक कौन था?
यशपाल, जिसे गहड़वालों ने पराजित किया।

Q19. प्रतिहारों के सिक्कों पर क्या अंकित होता था?
“श्रीमदादिवराह”।

Q20. प्रतिहार वंश का भारतीय इतिहास में योगदान क्या है?
भारत को अरब आक्रमण से बचाना और कन्नौज साम्राज्य को स्थापित करना।

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