Ganeshwar Civilization in Hindi

गणेश्वर सभ्यता की विशेषताएँ | Ganeshwar Civilization in Hindi

प्रस्तावना

भारत की प्राचीन सभ्यताओं में राजस्थान स्थित गणेश्वर सभ्यता एक महत्वपूर्ण ताम्रयुगीन सभ्यता है। यह सभ्यता सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील में कांतली नदी के किनारे सुनारी ग्राम से प्राप्त हुई थी। इसकी खोज सर्वप्रथम रतनचन्द्र अग्रवाल ने की और वर्ष 1977 में इसका उत्खनन कार्य करवाया गया। बाद में 1978-79 में इसका उत्खनन विजय कुमार के निर्देशन में हुआ।

गणेश्वर सभ्यता का काल 2800 ईसा पूर्व माना जाता है और इसका नामकरण गणेश्वर टीले के आधार पर हुआ। इसे इतिहासकारों ने कई नामों से संबोधित किया है, जैसे –

  • ताम्र युगीन सभ्यताओं का प्रारम्भिक केन्द्र

  • भारत की ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी

  • पुरातत्त्व का पुष्कर

  • ताम्रसंचयी संस्कृति

गणेश्वर सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ

1. ताम्र आयुध व उपकरण

  • गणेश्वर सभ्यता से लगभग 2000 ताम्र उपकरण प्राप्त हुए।

  • भारत में पहली बार किसी एक ही स्थल से इतनी बड़ी संख्या में ताम्र उपकरण मिले।

  • यहाँ से प्राप्त प्रमुख ताम्र सामग्री –

    • तीरों के अग्रभाग

    • सुइयाँ

    • छेदक यंत्र

    • छैनियाँ

    • मछली पकड़ने के कांटे

    • उस्तरे के फलक

    • कुल्हाड़े, भाले

    • अंगूठियाँ, चूड़ियाँ एवं आभूषण

👉 यह सभ्यता इस बात का प्रमाण है कि यहाँ के लोग धातुकर्म और शिकार तकनीक में निपुण थे।

 

2. ताँबे की प्रचुरता और धातु विज्ञान

  • यहाँ प्राप्त ताम्र सामग्री में 99% ताँबा पाया गया।

  • इसका अर्थ है कि गणेश्वर के लोग मिश्र धातु (Bronze) से परिचित नहीं थे।

  • यहाँ से मिली दोहरी पेचदार शिरावाली ताम्र पिन पश्चिमी व मध्य एशिया में भी पाई गई है।
    👉 यह दर्शाता है कि गणेश्वर सभ्यता से अन्य क्षेत्रों में ताँबे का निर्यात होता था।

3. लघु पाषाण उपकरण

  • ताम्र आयुध के साथ-साथ यहाँ से लघु पाषाण उपकरण भी प्राप्त हुए।

  • यह संकेत देता है कि लोग शिकार और भोजन संग्रहण की प्रवृत्ति रखते थे।

4. मिट्टी के बर्तन (गैरिक मृद्भाण्ड)

  • यहाँ से प्राप्त बर्तनों को उत्खननकर्ताओं ने कृपषवण मृद्भाण्ड कहा।

  • बर्तनों पर काले और नीले रंग की सजावट की गई थी।

  • मुख्यतः दो प्रकार के बर्तन प्राप्त हुए –

    1. हड़प्पा-पूर्व कालीन हल्के लाल रंग के बर्तन, जिन पर काले-सफेद रंग की चित्रकारी थी।

    2. लाल चिकनी मिट्टी से बने मजबूत बर्तन, जिन पर सुंदर चित्रकारी की गई थी।

प्रमुख बर्तन – मर्तबान, कलश, प्याले, तसले, हांडी और ढक्कन।

👉 विशेष तथ्य – छल्लेदार बर्तन केवल गणेश्वर से ही प्राप्त हुए हैं।

5. भवन निर्माण

  • यहाँ के भवन पत्थरों से बनाए जाते थे।

  • ईंटों का उपयोग नहीं किया गया।

  • अवशेषों से यह जानकारी मिलती है –

    • मिट्टी के चबूतरे

    • संग्रहण गड्ढे

    • लकड़ी का प्रयोग

  • घरों की फर्श पर जले पदार्थों के साक्ष्य मिले, जिससे पता चलता है कि यहाँ विभिन्न व्यवसायिक गतिविधियाँ होती थीं।

  • लोग अपनी बस्तियों को बाढ़ से बचाने के लिए बड़े पत्थरों से बाँधों का निर्माण भी करते थे।

6. पशु-पक्षी

गणेश्वर सभ्यता से मिली अस्थियों को तीन श्रेणियों में रखा गया है –

  1. घरेलू पशु – गाय, बैल, भेड़, बकरा, सूअर, कुत्ता, गधा, मुर्गा

  2. निवास क्षेत्र के पास रहने वाले – सूअर

  3. वन्य जीव – नीलगाय, हिरण, खरगोश, बनैला, कलंगी वाली बतख, मछली

👉 अस्थियों पर चोट के निशान इस बात का प्रमाण हैं कि लोग शिकारी और मांसाहारी थे।

7. व्यापार और वाणिज्य

  • मछली पकड़ने के कांटों से पता चलता है कि उस समय कांतली नदी में पर्याप्त जल था।

  • कांतली नदी सरस्वती व दृष्टि नदियों से होकर सिंधु नदी तक जुड़ी थी।

  • संभवतः इसी मार्ग से गणेश्वर से हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबंगा तक ताँबे का निर्यात होता था।

स्मरणीय तथ्य (Important Facts for Students)

  • गणेश्वर सभ्यता खेतड़ी-सिंघाना (झुंझुनूं) के ताँबा निक्षेप क्षेत्र के निकट स्थित थी।

  • यहाँ से मिले ताँबे का निर्यात हड़प्पा और मोहनजोदड़ो तक होता था।

  • उत्खनन से प्राप्त सामग्री राजकुमार हरदयाल राजकीय संग्रहालय, सीकर में सुरक्षित है।

  • यह पूर्व-हड़प्पा कालीन ताम्रयुगीन सभ्यता है और भारत की सबसे प्राचीन ताम्र सभ्यता मानी जाती है।

  • अब तक लगभग 300 स्थल कांतली नदी घाटी में खोजे जा चुके हैं।

  • यह सभ्यता उत्तर-पूर्वी राजस्थान और गंगा घाटी में फैली हुई थी।

निष्कर्ष

गणेश्वर सभ्यता न केवल राजस्थान की बल्कि पूरे भारत की प्राचीन ताम्रयुगीन संस्कृति की जननी कही जा सकती है। यहाँ मिले ताम्र आयुध, मिट्टी के बर्तन, भवन निर्माण शैली, पशु-पक्षी और व्यापारिक गतिविधियाँ यह दर्शाती हैं कि यह सभ्यता अत्यंत विकसित और संगठित थी। छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए यह एक महत्वपूर्ण विषय है।


गणेश्वर सभ्यता पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1. गणेश्वर सभ्यता कहाँ स्थित है?
👉 यह राजस्थान के सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील में कांतली नदी के किनारे सुनारी ग्राम से मिली है।

Q2. गणेश्वर सभ्यता का काल कौन-सा है?
👉 इसका काल लगभग 2800 ईसा पूर्व माना जाता है।

Q3. गणेश्वर सभ्यता की खोज किसने की थी?
👉 इसकी खोज रतनचन्द्र अग्रवाल ने की थी।

Q4. गणेश्वर सभ्यता का उत्खनन कब हुआ?
👉 वर्ष 1977 में उत्खनन हुआ और 1978-79 में विजय कुमार के निर्देशन में इसे आगे बढ़ाया गया।

Q5. गणेश्वर सभ्यता को किन नामों से जाना जाता है?
👉 ताम्रयुगीन सभ्यताओं का प्रारम्भिक केन्द्र, ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी, पुरातत्त्व का पुष्कर, ताम्रसंचयी संस्कृति।

Q6. यहाँ से कितने ताम्र उपकरण प्राप्त हुए?
👉 लगभग 2000 ताम्र उपकरण।

Q7. गणेश्वर सभ्यता से प्राप्त प्रमुख मिट्टी के बर्तन कौन-कौन से हैं?
👉 मर्तबान, कलश, प्याले, तसले, हांडी, ढक्कन।

Q8. गणेश्वर सभ्यता के लोग किस धातु से परिचित थे?
👉 वे शुद्ध ताँबे से परिचित थे, मिश्र धातु (Bronze) से नहीं।

Q9. गणेश्वर सभ्यता से प्राप्त सामग्री कहाँ सुरक्षित है?
👉 राजकुमार हरदयाल राजकीय संग्रहालय, सीकर में।

Q10. गणेश्वर सभ्यता का महत्व क्या है?
👉 यह भारत की सबसे प्राचीन ताम्रयुगीन सभ्यता है और धातुकर्म व व्यापार के विकास का प्रमाण प्रस्तुत करती है।

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