भूमिका:
राजस्थान का मध्यकाल यानी लगभग 8वीं से 18वीं सदी तक का काल, राजपूतों की वीरता, संघर्ष और सांस्कृतिक समृद्धि का काल रहा है। इस काल में कई राजवंशों का उदय हुआ और मुस्लिम आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष हुआ।
1. प्रतिहार वंश का उदय (8वीं – 11वीं सदी):
- नागभट्ट प्रथम ने प्रतिहार वंश की स्थापना की।
- मिहिरभोज (भोजराज) प्रतिहार वंश के सबसे शक्तिशाली शासक रहे।
- उन्होंने अरब आक्रमणों को रोका और राजस्थान के बड़े भाग पर शासन किया।
2. चौहान वंश और पृथ्वीराज चौहान:
- अजमेर और साकराय (सांभर) में चौहान वंश का प्रभाव था।
- पृथ्वीराज चौहान ने तराइन की प्रथम लड़ाई (1191) में मोहम्मद गोरी को हराया, लेकिन द्वितीय लड़ाई (1192) में पराजित हुए।
3. मेवाड़ का गौरव – राणा सांगा और महाराणा प्रताप:
- राणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान और बाबर के विरुद्ध संघर्ष किया।
- हल्दीघाटी युद्ध (1576) में महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर से संघर्ष किया।
- राणा प्रताप की छापामार युद्ध नीति और स्वतंत्रता की भावना आज भी प्रेरणादायी है।
4. अन्य प्रमुख राजवंश:
- मारवाड़ (जोधपुर): राव जोधा द्वारा स्थापित।
- बीकानेर: राव बीका द्वारा।
- जयपुर (आमेर): कछवाहा वंश की राजधानी।
5. मुगल-राजपूत संबंध:
- अकबर ने राजपूतों से संबंध स्थापित करने के लिए राजपूत राजकुमारियों से विवाह और उच्च पद प्रदान किए।
- मानसिंह, भगवंतराय जैसे राजपूत सेनापति मुगलों के विश्वस्त बने।
6. सामाजिक और सांस्कृतिक विकास:
- भक्ति आंदोलन में मीरा बाई, दादूदयाल, और रामस्नेही संप्रदाय जैसे संतों का योगदान।
- स्थापत्य: अंबर का किला, चित्तौड़गढ़, कुम्भलगढ़ जैसे दुर्ग।
निष्कर्ष:
राजस्थान का मध्यकाल संघर्ष, सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक है। इस युग में राजस्थान ने वीरता के साथ-साथ संस्कृति, वास्तुकला और साहित्य में भी योगदान दिया।
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