भूमिका:
राजस्थान, जो आज वीरता, संस्कृति और स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है, उसका प्राचीन इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। यह क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता से लेकर वैदिक काल, महाजनपद युग, मौर्य और गुप्त साम्राज्य तक एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
1. हड़प्पा सभ्यता और राजस्थान:
- कालीबंगा (हनुमानगढ़ ज़िला) सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल रहा है।
- यहाँ से प्राप्त अवशेष जैसे अग्निकुंड, कृषि के उपकरण, और मृतकों का दाह संस्कार हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक और परवर्ती काल की जानकारी देते हैं।
- बालाथल (उदयपुर) और गिलूण्ड (राजसमंद) जैसे स्थल भी अर्ध-हड़प्पा सभ्यता के साक्ष्य देते हैं।
2. वैदिक काल और जनपद:
- वैदिक काल में राजस्थान ‘ब्रह्मावर्त’ और ‘मध्यदेश’ के रूप में जाना जाता था।
- मत्स्य जनपद (आधुनिक अलवर क्षेत्र) महाभारत कालीन 16 महाजनपदों में से एक था।
- इस काल में आर्य संस्कृति, यज्ञ, वेद, और वर्ण व्यवस्था का विकास हुआ।
3. मौर्य वंश का प्रभाव:
- चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा राजस्थान का अधिकांश भाग मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित किया गया।
- सम्राट अशोक ने यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया, जिसकी पुष्टि बीजकपुर (भीनमाल) से प्राप्त शिलालेखों से होती है।
4. शकों और कुषाणों का आगमन:
- शकों ने राजस्थान के पश्चिमी भागों पर शासन किया।
- नागों, मालवों और कुषाणों के बीच संघर्ष भी इसी काल में हुआ।
5. गुप्त काल और सांस्कृतिक उत्कर्ष:
- चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के काल में राजस्थान में साहित्य, कला और स्थापत्य का उत्कर्ष हुआ।
- भीनमाल के ब्रह्मगुप्त (प्रसिद्ध गणितज्ञ) इसी काल में हुए।
6. हर्षवर्धन और राष्ट्रकूट:
- 7वीं सदी में हर्षवर्धन के शासन में राजस्थान का उत्तरी भाग सम्मिलित था।
- उसके बाद राष्ट्रकूटों और प्रतिहारों का उदय हुआ।
निष्कर्ष:
राजस्थान का प्राचीन इतिहास उसकी सांस्कृतिक समृद्धि, सामाजिक व्यवस्था और व्यापारिक उन्नति का द्योतक है। यह काल धार्मिक सहिष्णुता और स्थापत्य कला की नींव रखने वाला रहा।
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