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पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश : शुष्क मरुस्थल

पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश : शुष्क मरुस्थल

✍️शुष्क रेतीले मरुस्थल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है |

  1.  बालुका  स्तूप युक्त प्रदेश (58.50% )
  2. बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश (41.50%)

1. बालुका  स्तूप युक्त प्रदेश (58.50% ) 👉

  • बालूका का स्तूप के नाम से मशहूर विशाल रेत के टीले हवा के कटाव से बनते हैं और मार्च से जुलाई के बीच सबसे ज़्यादा सक्रिय रूप से खिसकते हैं। जैसलमेर में इन टीलों को धरियां कहा जाता है। नाचना गांव खास तौर पर “रेगिस्तान के मार्च” के लिए जाना जाता है, जो रेगिस्तान को बढ़ाने में योगदान देता है। टीलों के बीच निचले इलाके जो बारिश के पानी को अस्थायी रूप से इकट्ठा करते हैं, पलाया झील बनाते हैं। अगर ये इलाके सूख जाते हैं, तो वे रण या तट बन जाते हैं और अगर वे मैदान बन जाते हैं, तो उन्हें बालसन का मैदान कहा जाता है। प्राचीन जैसलमेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा की जाने वाली खड़ीन कृषि इन क्षेत्रों में इस्तेमाल की जाने वाली एक विधि है। बाड़मेर में थोब, जोधपुर में जॉब और जैसलमेर में पोकरण, लावा, कनोता, बरमसर और भाकरी जैसे इलाकों के साथ जैसलमेर जिला अपनी झीलों, रण, टाट और खड़ीन कृषि के लिए जाना जाता है।

1. बालुका का स्तूप:  हवा के कटाव से बने बड़े रेत के टीले।

2. टीलों की गति: टीले सबसे ज़्यादा मार्च और जुलाई के बीच खिसकते हैं।

3. स्थानीय शब्द: जैसलमेर में इन टीलों को धरियाँ कहते हैं।

4. नाचना गाँव: “रेगिस्तान के मार्च” के लिए जाना जाता है, जो रेगिस्तानीकरण को तेज़ करता है।

5. पलया झील: बारिश के पानी के जमा होने के कारण टीलों के बीच निचले इलाकों में अस्थायी झीलें बन जाती हैं।

6. रन या टाट: अगर पलया झीलें सूख जाती हैं, तो वह इलाका रन या टाट बन जाता है।

7. बालसन का मैदान: अगर इलाका मैदानी इलाकों में बदल जाता है, तो उसे बालसन का मैदान कहा जाता है।

8. खड़ीन कृषि: प्राचीन जैसलमेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक कृषि पद्धति।

9. भौगोलिक वितरण:

जैसलमेर जिला: अपनी झीलों, रण, टाट और खड़ीन कृषि के लिए जाना जाता है।

थोब: राजस्थान में सबसे बड़े रण का घर।

जोब: जोधपुर में स्थित रण।

– पोकरण, लावा, कनोता, बरमसर, भाकरी : जैसलमेर में रण क्षेत्र

बालुका  स्तूप का प्रकार : -

 बालुका  स्तूप विभिन प्रकार के होते हैं, हम इनको स्टेप वाइज स्टेप यहाँ पर पढेंगे : 

  1. अनुदैध्र्र्य या पवनानुवर्ती या रेखिक बालुका स्तूप
  2. अनुप्रस्थ बालुका स्तूप
  3. बरखान बालुका स्तूप
  4. पैराबोलिक बालुका स्तूप
  5. नेटवर्क बालुका स्तूप
  6. शब्र काफिज बालुका स्तूप
  7. तारा स्तूप

1. अनुदैध्र्र्य या पवनानुवर्ती या रेखिक बालुका स्तूप

पवन की दिशा के समानांतर बनने वाले बालुका स्तूप, रैखिक बालों को स्तूप कहलाते हैं, रेखिक बालुका  स्तूपों के मध्य जो रास्ता बन जाता है उसे गासी  कहते हैं |

2. अनुप्रस्थ बालुका स्तूप

अनुप्रस्थ बालुका स्तूप पवन की दिशा के समकोण में बनते हैं, गंगानगर के  सूरतगढ़, हनुमानगढ़ के रावतसर बीकानेर, चूरू, झुंझुनू आदि में बनते है | 

3. पैराबोलिक बालुका स्तूप

  • 🪶पेड़ों के आसपास रेत  के जमाव से बने बालों का स्तूप, पैराबोलिक बालुका स्तूप कहलाता है | 
  • 🪶संपूर्ण राजस्थान में पाए जाते हैं, सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं| 
  • 🪶पैराबोलिक बालुका स्तूप बरखान  के विपरीत बनते हैं | 

4. बरखान बालुका स्तूप

  •  गतिशील अर्ध-चंद्राकर बालुका स्तूप बरखान कहलाते हैं |
  • राजस्थान में मरुस्थल के लिए सर्वाधिक उत्तरदाई बालुका स्तूप बरखान ही है |
  • अनुप्रस्थ जैसे ही समकोण पर बनते हैं |
  • शेखावाटी क्षेत्र भालेरी (चुरु), सीकर, झुंझुनू, देशनोक, ओसियां, जोधपुर, सूरतगढ़ (गंगानगर) मुख्य रूप से पाये जाते हैं | 

5. नेटवर्क बालुका स्तूप

नेटवर्क बालुका स्तूप :- अनुदैध्र्र्य व अनुप्रस्थ के मध्य नेटवर्क का कार्य करते हैं ।

6. शब्र काफिज बालुका स्तूप

  • छोटी-छोटी झाड़ियां वह घास के झूंड  के आसपास बनने वाले बालुका स्तूप शब्र कफिज बालुका स्तूप होते हैं | 
  • यह मरुस्थल में बनने वाली सबसे छोटे बालुका स्तूप है | 

7 . तारा स्तूप

तारा स्तूप :-  तारे की आकार की बनती है मुख्यतः मोहनगढ़-जैसलमेर के मध्य और  सूरतगढ़-गंगानगर में पाये जाते हैं |

🪶सर्वाधिक मात्रा में बनने वाले बालुका स्तूप पैराबोलिक होते हैं। 

🪶राजस्थान में सर्वाधिक बालुका स्तूप जैसलमेर में पाये जाते हैं | 

🪶सर्वाधिक प्रकार के बालों का स्तूप जोधपुर में पाये जाते हैं |  

2. बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश (41.50%) 👉

🪶जैसलमेर के दक्षिणी भाग में  आकलवुड फोसिल , जीवाश्म पार्क है | 

🪶यह बालों का स्तूप मुक्त भाग है जहां पर अवसादी चाटने पाई जाती है,

🪶इन चट्टानों की विशेषताएं हैं  की यह लंबे समय तक पानी को रोक कर रख सकती है|

🪶यह क्षेत्र लाठी सीरीज कहलाता है  |

🪶लाठी सीरीज को थार का नकली स्थान भी कहते हैं | 

🪶लाठी सीरीज में चंदन नलकूप है जिन्हें थार का घड़ा कहा जाता है | 

🪶यहां भूगर्भिक जल पट्टी है, जमीन के नीचे पानी, जो की पोकरण से मोहनगढ़ के मध्य तक फैला हुआ है |

🪶लाठी सीरिज  सरस्वती नदी का अवशेष  मानी जाती है |  

🪶यहीं पर सेवण घास देखने को मिलती है, सेवण गांव पशुओं के लिए बहुत अच्छी रहती है क्योंकि इसमें लगभग 10% तक प्रोटीन रहता है सेवण घास का वैज्ञानिक नाम लेसियुरस सिंडीकस  है, इस घास का कटा  रूप लिलोण  कहलाता है। ‌

🪶इसी घास में  गोडावण राज्य पक्षी पाए जाते हैं, जिसका  वैज्ञानिक नाम ऑडियोटीस नाइग्रिसेप्स हैं | 

🪶गोडावण के अन्य नाम हुकना, गुधनमेर,   ग्रेट इंडियन बस्टर्ड , सोहन चिड़िया आदि नामो से जाना जाता है | 

🪶गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा 1981 में मिला था | 

🪶राष्ट्रीय मरू उद्यान अभ्यारण जो की जैसलमेर में स्थित है में गोडावण को संरक्षण मिला हुआ है यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण है 3162 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है |  

केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI)👉

उद्देश्य: भूमि उत्पादकता बढ़ाना और शुष्क क्षेत्रों का प्रबंधन करना।

मुख्यालय: जोधपुर

स्थापना: 1959

शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (AFRI)👉

उद्देश्य: रेगिस्तान के विस्तार को रोकने के लिए सूखा-सहिष्णु वनस्पतियों का विकास और संवर्धन करना, जैसे कैक्टस और एलोवेरा।

मुख्यालय: जोधपुर

स्थापना: 1985