आहड़ सभ्यता : राजस्थान की प्राचीन ताम्रयुगीन संस्कृति

प्रस्तावना

भारत की प्राचीन सभ्यताओं में राजस्थान की आहड़ सभ्यता (Ahar Civilization) का विशेष स्थान है। इसे आहड़-बनास संस्कृति भी कहा जाता है। यह सभ्यता लगभग 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. के बीच फली-फूली और इसे राजस्थान की ताम्रयुगीन सभ्यता के रूप में जाना जाता है। आहड़ सभ्यता हमें उस समय के लोगों की कृषि, व्यवसाय, आभूषण, मृतक संस्कार, आवास, कला एवं धार्मिक जीवन की झलक प्रस्तुत करती है।

आहड़ सभ्यता का सामान्य परिचय

  • स्थान – आहड़ सभ्यता के अवशेष उदयपुर से उत्तर-पूर्व 4 किमी दूर आहड़ कस्बे में, बनास नदी की सहायक नदी आयड़ (बेडच) के किनारे मिले।

  • खोज – 1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास ने खोज की।

  • महत्वपूर्ण उत्खनन

    • 1956 ई. में आर.सी. अग्रवाल (रतनचन्द्र) द्वारा

    • 1961-62 में एच.डी. सांकलिया एवं वी.एन. मिश्र के निर्देशन में

    • राजस्थान प्रशासन की ओर से पी.एल. चक्रवर्ती ने भी उत्खनन में भाग लिया।

  • उत्खनन कार्य डेक्कन कॉलेज पूना, मेलबॉर्न विश्वविद्यालय (ऑस्ट्रेलिया) और पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, राजस्थान द्वारा संपन्न हुआ।

  • पुरातत्वविद एच.डी. सांकलिया ने इसे आहड़-बनास संस्कृति कहा।

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आहड़ सभ्यता के उपनाम

  • ताम्रवती नगरी / ताम्बावती

  • आघाटपुर या आघाट दुर्ग (गोपीनाथ शर्मा)

  • स्थानीय नाम – धूलकोट

  • बनास संस्कृति – (एच.डी. सांकलिया)

आहड़ सभ्यता का काल

  • यह लगभग चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता मानी जाती है।

  • इसका कालखंड 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. माना गया है।

  • यह गैर-सिंधु सभ्यता स्थल था।

  • इसे ताम्र-पाषाण कालीन ग्रामीण सभ्यता कहा जा सकता है।

उत्खनन और विकास के चरण

आहड़ सभ्यता का उत्खनन तीन प्रमुख चरणों में हुआ:

1. प्रथम चरण

  • स्फटिक पत्थर से बने औजार

  • गोल व बेडौल उपकरण

  • गदाएँ, ओखलियाँ आदि
    👉 यह चरण धातु युग की ओर बढ़ते हुए मानव मानसिक विकास को दर्शाता है।

2. द्वितीय चरण

  • ताम्र/कांस्य उपकरण

  • तांबे की कुल्हाड़ियाँ, अंगूठियाँ, चूड़ियाँ आदि
    👉 इसे ताम्रयुगीन चरण कहा जाता है।

3. तृतीय चरण

  • लाल-भूरे व काले चित्रित मृद्भाण्ड

  • पूजा पात्र, खिलौने, पक्की मिट्टी की गोलियाँ

  • काँच, सीप, हड्डी व मूल्यवान पत्थरों से बने मनके
    👉 यह चरण सभ्यता की उन्नत सामाजिक व धार्मिक स्थिति को दर्शाता है।

आहड़ सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ

1. निवास स्थान

  • मकान धूप में पकाई गई ईंटों व ‘शिष्ट पत्थर’ (काले पत्थर) से बने।

  • छतें ढालू होती थीं, बाँस व कवेलू (केलू) से ढकी।

  • बड़े कमरों का आकार 33×20 फीट तक मिलता है।

  • दीवारों में क्वार्ज के टुकड़ों का प्रयोग मजबूती हेतु।

2. चूल्हे

  • एक घर में कई चूल्हे मिले (संयुक्त परिवार का प्रमाण)।

  • दो मुँह वाला चूल्हा भी मिला।

  • एक चूल्हे पर मानव हथेली की छाप मिली।

3. मृद्भाण्ड (Pottery)

  • लाल-काले चित्रित बर्तन

  • बड़े मृद्भाण्डों को गोरे, बंकोठ, कोठ कहा जाता था।

  • बर्तनों पर ज्यामितीय अलंकरण एवं ग्लोज की चमक।

  • ईरान से संबंध का प्रमाण।

4. सिक्के व मुहरें

  • 6 तांबे की यूनानी मुद्राएँ

  • 3 मुहरें, जिन पर ‘विहितभ विस’, ‘पलितसा’ और ‘तातीय तोम सन’ अंकित।

  • लाजवर्त (Lapis Lazuli) मिला – ईरान से व्यापार का प्रमाण।

5. पूजा एवं धार्मिक जीवन

  • मिट्टी की पूजा थालियाँ, नाग-नागिन व देव प्रतिमाएँ।

  • दीपक और छेदयुक्त गोलियाँ।

6. खिलौने व मूर्तियाँ

  • मिट्टी के बैल, हाथी, कुत्ते, मेंढ़े, गेंडे आदि के खिलौने।

  • बनासियन बुल’ (Terracotta Bull) विशेष प्रसिद्ध।

  • नारी व पुरुष की मूर्तियाँ।

7. मणियाँ एवं आभूषण

  • गोमेद, मूंगा, स्फटिक आदि से मणियाँ।

  • मिट्टी व ताम्र से बने कर्णाभूषण व चूड़ियाँ।

  • 26 प्रकार की मणियाँ मिलीं।

8. कृषि

  • गेहूँ, ज्वार व चावल की खेती।

  • सिलबट्टा व मृद्भाण्ड से प्रमाण।

  • आहड़वासी राजस्थान के प्रथम कृषक कहलाए।

9. व्यवसाय

  • तांबा गलाना व ताम्र वस्तुओं का निर्माण।

  • पशुपालन, रंगाई-छपाई, वाणिज्य प्रमुख।

10. मृतक संस्कार

  • मृतक को आभूषणों सहित दफनाया जाता था।

  • सिर उत्तर की ओर और पैर दक्षिण की ओर।

11. जल निकासी प्रणाली

  • मकानों से पानी निकालने हेतु शोषण पात्र (चक्रकूप) प्रणाली।

  • घड़े एक के ऊपर एक रखे जाते थे।

आहड़ सभ्यता का विस्तार

आहड़ संस्कृति का विस्तार केवल उदयपुर तक सीमित नहीं था। इसके अवशेष राजस्थान के अन्य जिलों में भी मिले:

  • उदयपुर – आहड़, बालाथल, भगवानपुरा, महाराज की खेड़ी

  • राजसमंद – गिलुंड, पछमता

  • भीलवाड़ा – ओझियाना, छतरी खेड़ा, बागौर

इसका संपर्क नवदाटोली, नागदा, एरन, कायथा (मध्यप्रदेश) और कच्छ (गुजरात) तक था।

स्मरणीय तथ्य

  • आहड़वासी ताँबा, लोहा, टिन और सोना जानते थे, पर चाँदी से अपरिचित थे।

  • यह अरावली पर्वत की दक्षिण-पूर्वी ढाल पर स्थित थी।

  • यहाँ स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता था।


निष्कर्ष

आहड़ सभ्यता राजस्थान की सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता ने भारतीय इतिहास को यह प्रमाण दिया कि सिंधु सभ्यता के समानांतर राजस्थान में भी एक समृद्ध ताम्रयुगीन संस्कृति अस्तित्व में थी। यहाँ की कृषि, उद्योग, मृतक संस्कार, धार्मिक परंपराएँ और व्यापार हमें प्राचीन जीवनशैली की गहरी झलक प्रदान करते हैं।

FAQs : आहड़ सभ्यता से संबंधित प्रश्नोत्तर

Q1. आहड़ सभ्यता कहाँ स्थित है?
आहड़ सभ्यता उदयपुर (राजस्थान) से 4 किमी दूर, आयड़ नदी (बनास की सहायक) के किनारे स्थित है।

Q2. आहड़ सभ्यता किस नाम से प्रसिद्ध है?
इसे आहड़-बनास संस्कृति और ताम्रयुगीन संस्कृति कहा जाता है।

Q3. आहड़ सभ्यता का काल कौन सा था?
लगभग 2000 ई.पू. से 1200 ई.पू. तक।

Q4. आहड़ सभ्यता की खोज किसने की थी?
1953 ई. में अक्षय कीर्ति व्यास ने खोज की।

Q5. आहड़ सभ्यता से प्राप्त मुख्य अवशेष कौन-कौन से हैं?
ताम्र उपकरण, लाल-काले मृद्भाण्ड, यूनानी मुद्राएँ, मुहरें, मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने, आभूषण व कृषि उपकरण।

Q6. आहड़वासी किस प्रकार के संस्कार का पालन करते थे?
मृतक को आभूषण सहित दफनाते थे, सिर उत्तर और पैर दक्षिण की ओर रखते थे।

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