राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है जो भौगोलिक, पारिस्थितिक और जलवायु की दृष्टि से अत्यंत विविध है। यहाँ की जलवायु को समझने के लिए उसके प्रभावी कारकों का विश्लेषण अत्यंत आवश्यक है। राजस्थान की जलवायु शुष्क से लेकर आर्द्र तक विविध प्रकार की पाई जाती है, जिसका निर्धारण कई भौगोलिक और प्राकृतिक तत्वों से होता है।
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1. अक्षांशीय स्थिति (Latitudinal Location)
राजस्थान 23°3′ से 30°12′ उत्तरी अक्षांशों के मध्य स्थित है। इसका दक्षिणी भाग उष्णकटिबंधीय (Tropical Zone) तथा शेष अधिकांश भाग उपोष्ण कटिबंधीय (Subtropical Zone) में आता है। इस कारण से यहां दिन और रात के तापमान में अत्यधिक अंतर पाया जाता है, विशेषतः गर्मियों में।
2. समुद्र से दूरी (Distance from Sea / Continentality)
राजस्थान समुद्र से काफी दूरी पर स्थित है, जिससे यहाँ समुद्री जलवायु का प्रभाव नगण्य रहता है। यही कारण है कि यहाँ महाद्वीपीय जलवायु पाई जाती है, जो अत्यधिक गर्मी और ठंड दोनों की विशेषता रखती है। यहाँ वायुमंडलीय नमी की कमी के कारण वर्षा भी कम होती है।
3. धरातलीय बनावट एवं ऊंचाई (Relief and Altitude)
राजस्थान का अधिकांश भूभाग समुद्र तल से औसतन 370 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। ऊँचाई में अंतर तापमान और आद्रता को प्रभावित करता है। जैसे कि माउंट आबू जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्र गर्मियों में भी ठंडे रहते हैं।
ग्रीष्मकाल में उत्तर-पश्चिमी शुष्क हवाएं तापमान बढ़ा देती हैं और आद्रता को घटा देती हैं। वहीं शीतकाल में भूमध्य सागर से आने वाली पश्चिमी विक्षोभ कुछ भागों में मावठ के रूप में वर्षा कराते हैं, जो रबी की फसलों के लिए लाभकारी होती है।
4. अरावली पर्वतमाला की दिशा (Aravalli Range Orientation)
अरावली पर्वत श्रृंखला दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर फैली है। यह दिशा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं के समांतर है, जिससे ये पर्वत इन्हें रोक नहीं पाते। परिणामस्वरूप राजस्थान का पश्चिमी भाग “वर्षा छाया क्षेत्र” बन जाता है जहाँ वर्षा अत्यल्प होती है।
पूर्वी राजस्थान में बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं थोड़ी वर्षा करती हैं, क्योंकि वे लंबी दूरी तय करके आद्रता काफी हद तक खो चुकी होती हैं।
5. समुद्र तल से ऊँचाई (Elevation from Sea Level)
राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से जैसे माउंट आबू समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर स्थित हैं, जिसके कारण यहाँ तापमान तुलनात्मक रूप से कम रहता है। यह ऊँचाई वर्ष भर की जलवायु पर असर डालती है।
राजस्थान की ऋतुएं (Seasons of Rajasthan)
राजस्थान में जलवायु के आधार पर तीन मुख्य ऋतुएं पाई जाती हैं:
1. ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून)
- मार्च से सूर्य कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, जिससे तापमान तेज़ी से बढ़ता है।
- जून में सूर्य की स्थिति के कारण तापमान चरम पर होता है — औसत तापमान 38°C से ऊपर।
- जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, चुरू, फलोदी में तापमान 45-49°C तक पहुंचता है।
- तेज़ लू, धूल भरी आंधियां (भभूल्या), और निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित होते हैं।
- सर्वाधिक आंधियां गंगानगर में (27 दिन) और सबसे कम झालावाड़ में (3 दिन) होती हैं।
विशेष आंकड़े:
- सर्वाधिक तापमान – चूरू
- न्यूनतम तापमान – चूरू
- सर्वाधिक दैनिक तापांतर – जैसलमेर
- सर्वाधिक वार्षिक तापांतर – चूरू
- सर्वाधिक सूक्ष्म स्थान – फलोदी (जोधपुर)
2. वर्षा ऋतु (मध्य जून से सितंबर तक)
राजस्थान में वर्षा ऋतु की शुरुआत सामान्यतः जून के अंतिम सप्ताह से होती है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून सक्रिय हो जाता है। हालांकि, यह राज्य के सभी भागों में समान रूप से वर्षा नहीं करता।
मानसून की विशेषताएं:
- मानसून अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों से आता है, परंतु अरावली पर्वतमाला की दिशा के कारण ये हवाएं पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा नहीं कर पातीं।
- बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएं पूर्वी राजस्थान में थोड़ी वर्षा करती हैं क्योंकि वे लंबी दूरी तय करके राजस्थान पहुंचती हैं और तब तक उनमें नमी कम हो जाती है।
- पश्चिमी राजस्थान जैसे जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर में वर्षा अत्यंत कम (औसतन 100-200 मिमी) होती है, वहीं पूर्वी जिलों जैसे कोटा, बूंदी, झालावाड़ आदि में वर्षा तुलनात्मक रूप से अधिक (600-1000 मिमी तक) होती है।
वर्षा वितरण:
- राजस्थान में 90% से अधिक वर्षा मानसून के इन महीनों में होती है — जुलाई, अगस्त और सितंबर।
- अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग को वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है जहाँ बहुत कम वर्षा होती है।
- पूर्वी राजस्थान के जिलों में अधिक वर्षा होती है, जिससे कृषि की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर होती है।
मानसून की समस्याएं:
- मानसून की अनियमितता के कारण सूखा, अकाल और फसल बर्बादी आम बात है।
- मानसून की देर से शुरुआत या अचानक समाप्ति किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण होती है।
3. शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी तक)
शीत ऋतु अक्टूबर से प्रारंभ होती है और फरवरी तक रहती है। इस अवधि में तापमान में भारी गिरावट देखी जाती है, विशेषतः उत्तर-पश्चिमी जिलों में।
शीत ऋतु की विशेषताएं:
- दिसंबर और जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं।
- रात के समय तापमान कई जिलों में 0°C से भी नीचे चला जाता है, जैसे चूरू और सीकर।
- इस अवधि में कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के प्रभाव से हल्की वर्षा होती है, जिसे “मावठ” कहा जाता है।
- मावठ की वर्षा रबी फसलों (जैसे गेहूं, जौ, चना) के लिए अत्यंत उपयोगी होती है।
शीत ऋतु में तापमान (उदाहरण):
- चूरू: न्यूनतम तापमान -2°C तक रिकॉर्ड किया गया है।
- माउंट आबू: हिम प्रदेश की तरह शीतल होता है और पर्यटन का प्रमुख केंद्र होता है।
जलवायु पर आधारित राजस्थान का विभाजन
राजस्थान को जलवायु के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है:
जलवायु प्रकार | प्रमुख क्षेत्र / जिले |
---|---|
शुष्क जलवायु | जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, चूरू, जोधपुर |
अर्ध-शुष्क जलवायु | अजमेर, जयपुर, अलवर, सीकर, भरतपुर |
आर्द्र जलवायु | कोटा, बूंदी, बांसवाड़ा, झालावाड़, बारां |
अत्यधिक आर्द्र | दक्षिणी राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्र जैसे माउंट आबू |
FAQs: राजस्थान की जलवायु से जुड़े सामान्य प्रश्न
प्रश्न 1: राजस्थान की जलवायु किस प्रकार की है?
उत्तर: राजस्थान की जलवायु मुख्यतः शुष्क और अर्द्ध-शुष्क है। पश्चिमी भाग मरुस्थलीय है जबकि पूर्वी भागों में आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
प्रश्न 2: राजस्थान में सबसे गर्म और सबसे ठंडा जिला कौन सा है?
उत्तर: सबसे गर्म और सबसे ठंडा जिला दोनों ही चूरू को माना जाता है, जहाँ तापांतर अत्यधिक होता है।
प्रश्न 3: राजस्थान में वर्षा क्यों कम होती है?
उत्तर: अरावली पर्वत की दिशा दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं के समांतर है, जिससे ये हवाएं बिना वर्षा किए निकल जाती हैं और पश्चिमी राजस्थान सूखा रहता है।
प्रश्न 4: मावठ क्या है?
उत्तर: मावठ वह शीतकालीन वर्षा है जो भूमध्यसागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभों के कारण होती है। यह रबी की फसलों के लिए लाभकारी होती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
राजस्थान की जलवायु अत्यंत विविध एवं विषम है। यह जलवायु प्रदेश की कृषि, जल स्रोत, मानव जीवनशैली और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती है। शुष्क मरुस्थलीय जलवायु से लेकर आर्द्र पर्वतीय जलवायु तक, राजस्थान एक जलवायु विविधता का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इस राज्य की जलवायु को समझना छात्रों, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों और पर्यटकों तीनों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
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