🌟 प्रस्तावना
राजस्थान की वीर भूमि सदियों से शौर्य, पराक्रम और बलिदान की गाथाओं से गूँजती रही है। इन्हीं महान नायकों में एक नाम सदा अमर रहेगा — महाराणा सांगा।
राणा सांगा (1482–1528 ई.) मेवाड़ के सबसे पराक्रमी शासकों में से एक थे, जिन्होंने न केवल अपने राज्य की रक्षा की बल्कि भारत में मुग़ल सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्रता का बिगुल भी फूंका।
महाराणा सांगा (राणा संग्राम सिंह) मेवाड़ के सर्वाधिक प्रसिद्ध और वीर राजाओं में से एक थे। उन्होंने न केवल राजस्थान बल्कि समूचे उत्तर भारत में राजपूताना की शौर्य परंपरा को जीवित रखा। बाबर जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट से भी उन्होंने बिना भय के युद्ध किया। राणा सांगा का इतिहास वीरता, स्वाभिमान और राष्ट्र रक्षा का प्रतीक है।
👶 जन्म और प्रारंभिक जीवन
- पूरा नाम: महाराणा संग्राम सिंह (प्रसिद्ध नाम — राणा सांगा)
- जन्म: 12 अप्रैल 1482
- वंश: गहलोत वंश (सिसोदिया शाखा)
- पिता: राणा रायमल
- माता: रानी रतनकंवर
- राजधानी: चित्तौड़गढ़
राणा सांगा अपने पिता के तीसरे पुत्र थे। बचपन से ही उनमें अद्भुत साहस और नेतृत्व गुण दिखाई देते थे। परंतु मेवाड़ की गद्दी पर बैठने का मार्ग आसान नहीं था।
राणा सांगा का जन्म मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ में हुआ था। बचपन से ही वे अत्यंत साहसी, पराक्रमी और बुद्धिमान थे। युवा अवस्था में उन्होंने कई छोटे युद्ध जीतकर अपने युद्ध कौशल का परिचय दिया।
⚔️ मेवाड़ की गद्दी के लिए संघर्ष
राणा सांगा के पिता महाराणा रायमल के तीन पुत्र थे – जेतसिंह, प्रिथ्वीराज और संग्राम सिंह (सांगा)।
राणा रायमल की मृत्यु के बाद मेवाड़ की गद्दी के लिए राणा सांगा और उनके भाइयों में संघर्ष छिड़ गया।
राणा सांगा ने साहस और बुद्धिमत्ता के बल पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को पराजित कर 1509 ई. में मेवाड़ का शासक बनकर राज्य संभाला।
🏹 महाराणा सांगा का शासनकाल
राणा सांगा का शासनकाल (1509–1528 ई.) मेवाड़ के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है।
उन्होंने अपने शासन में:
- पड़ोसी राज्यों पर विजय प्राप्त की,
- मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया,
- और राजपूतों में एकता की भावना को पुनर्जीवित किया।
राणा सांगा ने गुजरात, मालवा, दिल्ली और आगरा तक अपनी शक्ति का लोहा मनवाया।
⚔️ राणा सांगा के प्रमुख युद्ध
1. खातोली का युद्ध (1517 ई.)
- प्रतिद्वंदी: इब्राहिम लोदी (दिल्ली सुल्तान)
- स्थान: खातोली (कोटा के निकट)
- परिणाम: राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया और उसके कई अमीर बंदी बनाए।
- इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया और दिल्ली सल्तनत की शक्ति को झटका दिया। यह उनकी सबसे प्रारंभिक और प्रसिद्ध विजय थी।
2. बाड़ी का युद्ध (1518 ई.)
खातोली की विजय के बाद इब्राहिम लोदी ने बदला लेने के लिए फिर से सेना भेजी, परंतु बाड़ी के युद्ध में भी राणा सांगा ने उसे परास्त किया।
👉 इससे राणा सांगा की प्रसिद्धि समूचे भारत में फैल गई।
3. गागरोन का युद्ध (1519 ई.)
- प्रतिद्वंदी: महमूद खिलजी द्वितीय (मालवा के सुल्तान)
- स्थान: गागरोन (झालावाड़)
- परिणाम: राणा सांगा ने महमूद खिलजी को परास्त कर बंदी बनाया।
- बाद में उन्हें सम्मानपूर्वक छोड़ दिया गया — यह राणा की वीरता और उदारता दोनों का उदाहरण था।
4. बयाना का युद्ध (1527 ई. पूर्व)
- प्रतिद्वंदी: बाबर की सेना से पहले का संघर्ष
- स्थान: बयाना (भरतपुर क्षेत्र)
- तिथि: 16 फ़रवरी 1527 ई.
- यह युद्ध राणा सांगा और बाबर के बीच होने वाले निर्णायक संघर्ष की प्रस्तावना था।
🏰 राणा सांगा और बाबर का संघर्ष
1526 ई. में बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर कब्ज़ा किया।
राणा सांगा को लगा कि अब यह विदेशी सत्ता भारत की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
उन्होंने सभी राजपूत राजाओं को एकजुट होकर बाबर के विरुद्ध युद्ध करने का आह्वान किया।
उनका उद्देश्य था —
“दिल्ली से विदेशी शासन समाप्त करना और हिंदू स्वराज की स्थापना करना।”
⚔️ खानवा का युद्ध (1527 ई.)
- स्थान: खानवा (भरतपुर के पास)
- तिथि: 17 मार्च 1527 ई.
- सेनापति: महाराणा सांगा
- प्रतिद्वंदी: बाबर
- परिणाम: बाबर की विजय, परंतु सम्मान राणा सांगा का | यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
युद्ध का विवरण:
- राणा सांगा के साथ लगभग सभी प्रमुख राजपूत शासक थे — जैसे राव मालदेव, मेदिनी राय, सिलहर देव आदि।
- बाबर ने तोपों और नई युद्ध तकनीक (gunpowder & artillery) का प्रयोग किया।
- प्रारंभ में राणा सांगा की सेना ने बढ़त बनाई, परंतु बाबर की रणनीति और तोपों ने युद्ध की दिशा बदल दी।
परिणाम:
- राणा सांगा घायल हो गए और युद्ध हार गए।
- इसके बावजूद उनकी वीरता ने राजपूत मर्यादा को अमर कर दिया।
- खानवा का युद्ध भारत में मुग़ल शासन की नींव बन गया।
- फिर भी बाबर को भारी हानि हुई और उसने कभी पुनः मेवाड़ पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया।
- 👉 यह युद्ध भले ही सांगा हार गए, पर उनकी वीरता और नेतृत्व अमर हो गया।
🕊️ महाराणा सांगा की मृत्यु (1528 ई.)
खानवा की हार के बाद भी राणा सांगा ने हार नहीं मानी।
उन्होंने पुनः बाबर के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू की, लेकिन 1528 ई. में उनकी अचानक मृत्यु हो गई।
कहा जाता है कि उन्हें उनके ही दरबार के कुछ लोगों ने विष दे दिया ताकि वे बाबर से फिर युद्ध न करें।
मृत्यु वर्ष: 30 जनवरी 1528 ई. ( 46 वर्ष )
स्थान: बसवा (भरतपुर के समीप)
उनकी मृत्यु से मेवाड़ का स्वाभिमान तो नहीं टूटा, परंतु एक महान युग का अंत हो गया।
🏆 महाराणा सांगा की प्रमुख उपलब्धियाँ
- राजपूत एकता को पुनर्जीवित किया।
- मेवाड़ को उत्तर भारत की सबसे शक्तिशाली राज्य बनाया।
- गुजरात, मालवा, दिल्ली और आगरा तक सैन्य अभियान चलाए।
- विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध राष्ट्र भावना जगाई।
- सिसोदिया वंश की प्रतिष्ठा और गौरव को ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
राणा सांगा का जीवन हमें सिखाता है कि पराजय भी तब महान बन जाती है जब उसमें राष्ट्र और धर्म की रक्षा का भाव हो।
🕊️ निष्कर्ष
महाराणा सांगा केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक राष्ट्रीय नेता और स्वतंत्रता के प्रतीक थे।
उन्होंने राजपूत वीरता, स्वाभिमान और बलिदान की जो मिसाल कायम की, वह आज भी भारतीय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
राणा सांगा का नाम सदैव भारत के वीर पुत्रों में अग्रणी रहेगा।
आज भी “राणा सांगा” नाम सुनते ही राजपूताना की वीरता और त्याग की छवि मन में उभर आती है।
❓FAQs – महाराणा सांगा का इतिहास
1. महाराणा सांगा का पूरा नाम क्या था?
👉 महाराणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था।
2. खानवा का युद्ध कब और किसके बीच हुआ?
👉 1527 ई. में महाराणा सांगा और बाबर के बीच यह युद्ध हुआ था।
3. महाराणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई?
👉 1528 ई. में उन्हें विष देकर मार दिया गया, जब वे बाबर से पुनः युद्ध की तैयारी कर रहे थे।
4. महाराणा सांगा किस वंश से थे?
👉 वे मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश (गहलोत वंश) से थे।
5. राणा सांगा की प्रमुख उपलब्धि क्या थी?
👉 राजपूतों को एकजुट करना और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता की रक्षा करना।





