राजस्थान की जलवायु: मानसून और ऋतुओं का विश्लेषण – भाग – 3 , राजस्थान की जलवायु को समझना उसके भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य को समझने जैसा है। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करेंगे राजस्थान में वर्षा ऋतु, शीत ऋतु तथा मानसून के आगमन व प्रभाव पर।
वर्षा ऋतु (Rainy Season: मध्य जून से सितंबर)
राजस्थान में वर्षा का प्रमुख स्रोत दक्षिण-पश्चिम मानसून है जो मध्य जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है। इस अवधि में कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 90% हिस्सा गिरता है।
मानसून के पीछे का वैज्ञानिक कारण:
अप्रैल-जून के दौरान अधिक तापमान के कारण राजस्थान में निम्न वायुदाब क्षेत्र बनता है।
वहीं, बंगाल की खाड़ी व हिंद महासागर में जल की अधिकता के कारण उच्च वायुदाब क्षेत्र बने रहते हैं।
वायुदाब के इस अंतर के कारण हवाएं समुद्र से भूमि की ओर बहती हैं, जिससे मानसूनी हवाओं का निर्माण होता है।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की दो शाखाएं:
बंगाल की खाड़ी शाखा:
यह शाखा गंगा-यमुना के मैदानों को पार कर पूर्वी राजस्थान में प्रवेश करती है।
अरावली पर्वत श्रृंखला की स्थिति के कारण यह हवाएं पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान में वर्षा करती हैं।
अरब सागर शाखा:
यह शाखा तीन भागों में विभाजित होती है:
केरल तट पर भारी वर्षा
नर्मदा घाटी होते हुए मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में वर्षा
सौराष्ट्र में प्रवेश कर हिमालय की ओर अग्रसर होते हुए वापसी में राजस्थान के उत्तर-पश्चिम भाग में थोड़ी वर्षा करती है।
राजस्थान में मानसून का प्रभाव:
बंगाल की खाड़ी शाखा से ही राजस्थान में सबसे अधिक वर्षा होती है।
पश्चिमी राजस्थान जैसे जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर आदि क्षेत्र अरावली के वृष्टिछाया क्षेत्र में आते हैं, इसलिए यहां बहुत कम वर्षा होती है।
मानसूनी हवाओं को स्थानीय भाषा में “पुरवाई” या “पुरवैया” कहा जाता है।
शीत ऋतु (Winter Season: अक्टूबर से फरवरी)
शीत ऋतु की शुरुआत:
शीत ऋतु की वास्तविक शुरुआत दिसंबर से होती है, जब उत्तर भारत में तापमान काफी नीचे गिर जाता है।
यह ऋतु फरवरी के अंत तक रहती है।
शीत ऋतु में हवाओं की दिशा और प्रभाव:
उच्च वायुदाब क्षेत्र मध्य एशिया में और निम्न वायुदाब हिंद महासागर में बनने के कारण हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं।
इन हवाओं को “पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances)” कहा जाता है, जो भूमध्य सागर से उत्पन्न होते हैं।
पश्चिमी विक्षोभ और ‘मावठ’ वर्षा:
यह हवाएं राजस्थान के उत्तर-पश्चिम भाग में हल्की वर्षा कराती हैं जिसे “मावठ” कहते हैं।
मावठ वर्षा रबी की फसलों जैसे गेहूं और जौ के लिए बेहद लाभकारी होती है, इसलिए इसे “सुनहरी बूंदों की वर्षा” भी कहा जाता है।
राजस्थान में वर्षा की स्थिति (Rainfall Statistics in Rajasthan)
विवरण | स्थान |
---|---|
सर्वाधिक औसत वर्षा वाला जिला | झालावाड़ |
न्यूनतम औसत वर्षा वाला जिला | जैसलमेर |
सर्वाधिक वर्षा वाला संभाग | कोटा |
न्यूनतम वर्षा वाला संभाग | जोधपुर |
लौटता हुआ मानसून (Retreating Monsoon: अक्टूबर - मध्य नवंबर)
इसे “Post Monsoon” या “वापसी मानसून” भी कहा जाता है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून के कमजोर पड़ने पर हवाएं वापस समुद्र की ओर लौटने लगती हैं।
इस दौरान तापमान धीरे-धीरे गिरने लगता है और आकाश साफ होने लगता है।
राजस्थान की जलवायु की ऋतुएं (Seasons of Rajasthan)
ग्रीष्म ऋतु (मार्च से जून मध्य):
तापमान 45°C से 49°C तक पहुंचता है।
लू चलती है, धूल भरी आंधियाँ आती हैं।
सर्वाधिक आंधियां श्रीगंगानगर में, सबसे अधिक तापांतर चूरू में दर्ज होते हैं।
वर्षा ऋतु (जून मध्य से सितंबर):
मानसूनी हवाओं से 90% वर्षा होती है।
बंगाल की खाड़ी व अरब सागर से हवाएं आती हैं।
शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी):
दिसंबर से फरवरी असली सर्दी होती है।
पश्चिमी विक्षोभ से मावठ वर्षा होती है।
महत्वपूर्ण तथ्य (Key Highlights):
राजस्थान का सबसे अधिक गर्म जिला: फलोदी (जोधपुर)
सर्वाधिक तापांतर: चूरू
सबसे अधिक मावठ: उत्तर-पश्चिम राजस्थान
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
मानसून सामान्यतः मध्य जून में राजस्थान में प्रवेश करता है और सितंबर तक सक्रिय रहता है।
राजस्थान में सबसे अधिक वर्षा झालावाड़ जिले और कोटा संभाग में होती है।
मावठ भूमध्य सागर से आने वाली पश्चिमी हवाओं से शीत ऋतु में होने वाली वर्षा है, जो रबी की फसलों के लिए अत्यंत लाभदायक होती है।
जैसलमेर जिले में राजस्थान की सबसे कम औसत वर्षा होती है।